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मदे॑मदे॒ हि नो॑ द॒दिर्यू॒था गवा॑मृजु॒क्रतुः॑। सं गृ॑भाय पु॒रू श॒तोभ॑याह॒स्त्या वसु॑ शिशी॒हि रा॒य आ भ॑र ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

made-made hi no dadir yūthā gavām ṛjukratuḥ | saṁ gṛbhāya purū śatobhayāhastyā vasu śiśīhi rāya ā bhara ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

मदे॑ऽमदे। हि। नः॒। द॒दिः। यू॒था। गवा॑म्। ऋ॒जु॒ऽक्रतुः॑। सम्। गृ॒भा॒य॒। पु॒रु। श॒ता। उ॒भ॒या॒ह॒स्त्या। वसु॑। शि॒शी॒हि। रा॒यः। आ। भ॒र॒ ॥

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:81» मन्त्र:7 | अष्टक:1» अध्याय:6» वर्ग:2» मन्त्र:2 | मण्डल:1» अनुवाक:13» मन्त्र:7


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर वह ईश्वर का उपासक कैसा है, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वान् ! (ऋजुक्रतुः) सरल ज्ञान और कर्मयुक्त (ददिः) दाता आप ईश्वर की आज्ञापालन और उपासना से (मदेमदे) आनन्द-आनन्द में (हि) निश्चय से (नः) हमारे लिये (उभयाहस्त्या) दोनों हाथों की क्रिया में उत्तम (पुरु) बहुत (शता) सैकड़ों (वसु) द्रव्यों का (शिशीहि) प्रबन्ध कीजिये (गवाम्) किरण, इन्द्रियाँ और पशुओं के (यूथा) समूहों को (आभर) चारों ओर से धारण कर (रायः) धनों को (संगृभाय) सम्यक् ग्रहण कर ॥ ७ ॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्यो ! जो सब आनन्दों का देनेवाला, सब साधन-साध्य रूप पदार्थों का उत्पादक, सब धनों को देता है, वही ईश्वर हमारा उपास्य है, अन्य नहीं ॥ ७ ॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनः स ईश्वरोपासकः कीदृश इत्युपदिश्यते ॥

अन्वय:

हे विद्वन् ! ऋजुक्रतुर्ददिस्त्वमीश्वरोपासनेन मदेमदे हि नोऽस्मभ्यममुभया हस्त्या पुरु शता वसु गवां यूथा चाभर रायः सङ्गृभाय शिशीहि ॥ ७ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (मदेमदे) हर्षे हर्षे (हि) खलु (नः) अस्मभ्यम् (ददिः) दाता (यूथा) समूहान् (गवाम्) रश्मीनामिन्द्रियाणां पशूनां वा (ऋजुक्रतुः) ऋजवः क्रतवः प्रज्ञाः कर्माणि वा यस्य सः (सम्) सम्यक् (गृभाय) गृहाण (पुरु) बहूनि (शता) असंख्यातानि (उभयाहस्त्या) समन्तादुभयत्र हस्तो येषु कर्मसु तानि तेषु साधूनि (वसु) वासस्थानानि (शिशीहि) शिनु। अत्र बहुलं छन्दसीति श्लुरन्येषामपीति दीर्घश्च। (रायः) विद्यासुवर्णादिधनसमूहान् (आ) समन्तात् (भर) धेहि ॥ ७ ॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्या ! यः सर्वानन्दप्रदः सर्वसाधनसाध्योत्पादकः सर्वाणि धनानि प्रयच्छति, स एवेश्वरोऽस्माभिरुपास्यो नेतरः ॥ ७ ॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे माणसांनो! जो सर्व आनंदाचा दाता, सर्व साधन साध्यरूपी पदार्थांचा उत्पादक, सर्व धन प्रदाता, तोच ईश्वर आमचा उपास्य आहे, दुसरा कुणी नव्हे. ॥ ७ ॥